Friday 4 August 2017

चेतना का सेमिनार 30 जुलाई 2017

‘चेतना’ का सेमिनार : ‘नॉट टेकिंग रिस्क ईश रिस्की’

डॉ. सुभाष चंद्रा ने ‘चेतना’ के सेमिनार को किया सम्बोधित

जीवन में ‘चुनौती’ स्वीकार करना चाहिये-

सफल हुए तो नेतृत्व, असफल रहे तो सीख

एक बात बड़ी महत्वपूर्ण है-‘‘जब आप किसी को जीवन में चुनौती स्वीकार करने की सीख दे रहे हों तो पहले स्वयं, कोई चुनौती स्वीकार करें, जिसमें आप स्वयं सफल या असफल अवश्य रहे हों।’’
दिल्ली की सुप्रसिद्ध सामाजिक संस्था ‘चेतना’ वास्तव में उपरोक्त कथन का सबसे बड़ा उदाहरण बन गई है। ‘चेतना’, जिसके अध्यक्ष कवि श्री राजेश चेतन हैं, ने जीवन, आध्यात्म, व्यापार एवं स्वास्थ्य आदि विषयों पर अनेकों सेमिनार आयोजित कर, न केवल आम लोगों को अपना जीवन सफल बनाने हेतु प्रेरित किया है, अपितु ‘चेतना’ स्वयं भी एक सफल ‘प्रेरणादायी’ संस्था बन गई है। ‘चेतना’ की सफलता के इतिहास में 30 जुलाई 2017 का दिन यादगार बन गया है। ‘चेतना’ ने इस दिन अपने एक महान व ऐतिहासिक सेमिनार में भारतवर्ष के ख्याति प्राप्त मोटीवेटर डॉ. सुभाष चंद्रा को आमंत्रित कर, ‘चेतना’ की सफलता को एक मील का महत्वपूर्ण पत्थर दे दिया है।
ज़ी मीडिया के एमडी एवं देश के विख्यात मोटीवेटर वक्ता डॉ. सुभाष चंद्रा ने उत्तरी दिल्ली के होटल रेडीसन ब्ल्यू में ‘चेतना’ द्वारा आयोजित सेमिनार ‘नॉट टेकिंग रिस्क ईश रिस्की’ को सम्बोधित किया। उन्होंने अपने वक्तव्य का शुभारम्भ स्वामी विवेकानंदजी के एक प्रसिद्ध वाक्य से किया-‘‘जोखिम लीजिये, यदि सफल हुए तो नेतृत्व मिलेगा और यदि असफल हए तो कुछ नया सीखने को मिलेगा।’’ डॉ. सुभाष चंद्रा ने विषय के विभिन्न पहलुओं की सटीक और सरल व्याख्या के लिये सभागार में उपस्थित लोगों से प्रश्न पूछे। अनेक प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने जो बाते बताईं उनमें मुख्य विन्दु इस प्रकार से हैं-
‘‘सम्भावना का दूसरा नाम ही जीवन है। दूसरे के जीवन से प्रेरित होकर उस जैसा रिस्क नहीं लेना चाहिये। व्यापार ही नहीं समाजिक जीवन में भी अनेक प्रकार की चुनौतियाँ आती हैं। रिस्क लेने से पूर्व यह विचार कर लेना चाहिये कि रिस्क लेने के बाद आने वाली चुनौतियों को ठीक कैसे कर पाउँगा। जिस व्यक्ति की समाज में विश्वसनियता समाप्त हो गई हो, जिसकी सोच नकारात्मक हो, ऐसे व्यक्ति रिस्क नहीं ले सकते हैं। नकारात्मक विचार वालों से सदैव दूर ही रहना चाहिये। हर विफलता कुछ न कुछ नया अवश्य सिखा देती है। पहले प्रयास में असफलता मिलने पर दूसरे प्रयास में सफलता की गारंटी बढ़ जाती है। असफलता तभी मिलती है जब हम असफलता को स्वीकार कर लेते हैं। जीवन में चुनौती स्वीकार करना, मनुष्य का स्वभाव होना चाहिये।
‘चेतना’ के अध्यक्ष श्री राजेश चेतन ने बिहार-यूपी के निर्धन अभिभावकों की चुनौती का विषय उठाते हुए पूछा कि गरीब किसान और मजदूर अपने बच्चों को पढ़ाने और आईएएस, आईपीएस बनाने के लिये अपना घर-जमीन तक बेच देते हैं। उन्हें ऐसा गंभीर रिस्क लेना चाहिये या नहीं?
श्री राजेश चेतनजी के इस प्रश्न के उत्तर में डॉ. सुभाष चंद्रा ने कहा कि अभिभावकों को चाहिये कि वह अपने बच्चों को बचपन में ही अच्छे संस्कार दें। बचपन में दिये गये अच्छे संस्कारों में वह शक्ति होती है कि बच्चा जब युवक बनता है तब उसमें चुनौतियों का सामना करने की अद्भुत क्षमताएँ स्वयं विकसित हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि ‘पूत कपूत तो क्यों धन संचे और पूत सपूत तो क्यों धन संचे।’ बच्चों को उनके हिसाब से फलने-फूलने हेतु हमें प्रोत्साहित करना चाहिये।
एक प्रश्न के उत्तर में डॉ. सुभाष चंद्रा ने कहा कि एक कार्य में बार-बार विफलता मिलने पर भी स्वयं पर भरोसा करना नहीं छोड़ना चाहिये। जीवन में रिस्क लेने से पूर्व स्वयं की क्षमता और मनःस्थिति का आकलन अवश्य करना चाहिये। किसी भी काम के लिये चुनौती लेने में एकाग्रता अति आवश्यक है। चुनौती पूर्ण कार्य और कर्म-भाग्य में एक दूसरे का पूरक होने का सम्बन्ध है। डॉ. सुभाष चंद्रा ने कर्म और भाग्य में ‘कर्म’ को महत्वपूर्ण बताते हए कहा कि यदि हम थोड़ा सा भी कर्म नहीं करते तो भाग्य भी हमारा साथ नहीं देता।
सेमिनार के विषय को पुष्ट करते हुए डॉ. सुभाष चंद्रा ने वायु सेना से अवकाश प्राप्त, प्रख्यात व्यवसायी श्री रमेश अग्रवाल को एक उदाहरण स्वरूप मंच पर आमंत्रित किया। श्री रमेश अग्रवाल, ‘अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स’ नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यवसाय करते हैं। डॉ. सुभाष चंद्रा ने बताया कि श्री रमेश अग्रवाल ने सेना की नौकरी बीच में छोड़ कर, और वहीं से प्रेरणा लेकर, ‘पैकर्स एंड मूवर्स’ का व्यवसाय आरम्भ करने का रिस्क लिया, जिसमें वह पूर्णतः सफल रहे। श्री रमेश अग्रवाल ने अपने व्यवसाय में ही ‘निद्रा दान’ के कार्य का एक और रिस्क लिया, और जयपुर-अजमेर रोड पर ड्राईवरों के लिये ‘निद्रा-दान केन्द्र’ स्थापित किया। श्री रमेश अग्रवाल ने देश के करोड़ों लोगों को संदेश देते हुए कहा कि किसी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व हमें यह निर्णय कर लेना चाहिये कि कार्य में आने वाली बाधा आरंभिक है या वह बाधाओं का आरम्भ है। उपस्थित श्रोता समुदाय ने तालियों की गड़गड़ाहट से श्री रमेश अग्रवाल को उनके चुनौती पूर्ण सफल जीवन के लिये बधई दी।
डॉ. सुभाष चंद्रा ने विषय को स्पष्ट करने के लिये श्री इल्तजा अंसारी नामक एक युवक को मंच पर आमंत्रित किया, जिनके पिता कुछ वर्षों से खो गये हैं। किसी की प्रेरणा पर, अपने पिता को ढूँढते हुए वह युवक उन स्थानों पर जाने लगा जहाँ गरीबों में भोजन बाँटा जाता है। पिता को ढूँढते हुए उस युवक को कुछ ऐसे गरीब लावारिस बच्चे-युवक मिले जो सड़कों पर मारे-मारे फिरते रहते हैं। युवक ने ऐसे बच्चों-युवकों को पढ़ाना आरम्भ कर दिया।
‘चेतना बोर्ड के सभी सदस्यों यथा सर्वश्री राजेश चेतन (अध्यक्ष), एन. आर. जैन (महासचिव), दिनेश गुप्ता (कोषाध्यक्ष), राजकुमार अग्रवाल, जितेन्द्र गुप्ता, अशोक बंसल, सत्यभूषण गोयल, भारतभूषण अलाबादी, सुनील अग्रवाल, सतभूषण गोयल ने वर्त्तमान समय के महान प्रेरक डॉ. सुभाष चंद्रा का अभिनंदन, उन्हें एक पौधा प्रदान कर और एक शॉल ओढ़ा कर किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ इस ऐतिहासिक सेमिनार को अपना विशेष सहयोग प्रदान करने वाले लोगों के सम्मान से हुआ। श्री चम्पालाल लोहिया, श्री दीपक लोहिया (मेरीनो प्लाईवुड), श्री अनिल सिंहल (गोल्डेन मसाले), श्री हरिकिशन अग्रवाल (प्रमुख समाजसेवी), श्री संजीव गोयल (समाजसेवी), श्री मामचंद गुप्ता (समाजसेवी), श्री रमेश अग्रवाल (अग्रवाल पैकर्स एंड मूवर्स), श्री जगदीश मित्तल (राष्ट्रीय कवि संगम), श्री वी. ऐम. जैन (सचिव, प्रधनमंत्री कार्यालय) को एक पुष्प दे कर सम्मानित किया गया।
‘नॉट टेकिंग रिस्क ईश रिस्की’ शीर्षक यह सेमिनार शीघ्र ही ‘डॉ. सुभाष चंद्रा शो’ के अन्तर्गत ‘जी न्यूज’ चैनल पर प्रसारित किया जाएगा। ‘चेतना से सीधे जुड़ने ओर सूचनाएँ प्राप्त करने हेतु इस नंबर पर आप अभी मिस्ड कॉल अवश्य करें : 02261403610





  

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